History and Religion

कहानी अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान की

prathviraj chauhan history in hindi

पृथ्वीराज चौहान कौन थे? कहॉं तक फैला हुआ था उनका शासन?

चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान!

12वीं सदी में राजकवि चन्द्रबरदाई की लिखी यह कविता आज भी उस महान शासक की याद दिला जाती है जिसका शासन दिल्ली से अज़मेर तक फैला हुआ था। उत्तर भारत के इस महान शासक का नाम था सम्राट पृथ्वीराज चौहान तृतीय, जिन्हें हम आम तौर पर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के नाम से जानते हैं। जिनका शासनकाल 1178 से 1192 तक यानी करीब 14 साल तक रहा था। जो राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था। सम्राट पृथ्वीराज एक महान शासक थे, जिनकी राजधानी अजयमेरू हुआ करती थी जिसे वर्तमान में अज़मेर के नाम से जाना जाता है। तो आइए, जानते हैं महान शासक सम्राट पृथ्वीराज चौहान के बारे में।

पृथ्वीराज चौहान का जन्म

वीर शिरोमणी सम्राट पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1 जून 1163 को गुजरात के पाटण में हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर, माता का नाम कर्पूरदेवी, छोटे भाई का नाम हरिराज और बहन का नाम पृथा था। पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा उस समय स्थापित “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” से हुई थी जहां उन्होंने अपने गुरू युद्ध कला और शस्त्र विद्या की शिक्षा प्राप्त की थी। जानकारी के लिए बता दें कि “सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ” की जगह पर अब मस्ज़िद है, जिसे ढ़ाई दिन का झोपड़ा के नाम से भी जाना जाता है।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने महज 15 वर्ष की आयु में अपने राज्य की सत्ता संभाली थी। वे 6 भाषाओं में संस्कृत, प्राकृत, मगधी, पैशाची, शौरसेनी और अपभ्रंश निपुण थे। इसके अलावा उन्हें मीमांसा, वेदान्त, गणित, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था। उनके राजकवि चंदबरदाई की काव्य रचना “पृथ्वीराज रासो” के अनुसार पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने, अश्व व हाथी नियंत्रण विद्या में भी पारंगत थे।

पृथ्वीराज चौहान की सेना

पृथ्वीराज चौहान एक महान प्रतापी नेता थे। उनकी सेना में घोड़ों का विशेष महत्व रहता था। कहा जाता है कि इसीलिए उनकी सेना में 70 हज़ार से ज्यादा गुड़सवार सैनिक हुआ करते थे। इसके अलावा उनकी सेना में बड़ी संख्या में हाथी और पैदल सैनिक भी होते थे। पृथ्वीराज चौहान का पूरा जीवन वीरता, साहस और बहादूरी के किस्सों से भरा हुआ है। उनके दादा अंगम ने उनके साहस को देखते हुए उन्हें दिल्ली शासन का उत्तरा​धिकारी घोषित किया था। पृथ्वीराज चौहान ने मात्र 13 वर्ष की आयु में गुजरात के शासक भीमदेव को पराजित किया था।

इतिहास के अनुसार सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने वर्ष 1177 में भादानक देशीय को, वर्ष 1182 में जेजाकभुक्ति शासक और वर्ष 1183 में चालुक्य वंशीय शासक को पराजित कर अपना शासन विस्तार ​किया था। इसके बाद मोहम्मद गौरी से उनका युद्ध इतिहास में ​विशेष स्थान रखता है, जो जग विख्यात है।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की लव स्टोरी

किवंदती के अनुसार, दिल्ली के शासक सम्राट पृथ्वीराज चौहान और कन्नौज के राजा जयंचद की पुत्री संयोगिता के बीच प्रेम संबंध थे जो जयचंद को पसंद नहीं थे। पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता आपस में विवाह करना चाहते थे लेकिन जयचंद, पृथ्वीराज की वीरता और वैभव से जलता था। इसी कारण जयंचद ने पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया और पृथ्वीराज चौहान का नहीं बुलाया। जबकि संयोगिता पृथ्वीराज चौहान को ही अपना पति मान चुकी थीं। कहा जाता है कि जयचंद ने दरबार के दरवाजे पर पृथ्वीराज की द्वारपाल के रूप में पुतला लगवाया। इधर, संयोगिता ने पृथ्वीराज चौहान को पत्र भेजा कि उनका स्वयंवर हो रहा है और वे उनको यहां से आकर ले जाए।

जब स्वयंवर शुरू हुआ तो संयोगिता ने सभी राजाओं को नकारते हुए पृथ्वीराज के पुतले को माला पहनाकर अपना वर चुन लिया। इसके बाद पृथ्वीराज चौहान आकर संयोगिता को भरे दरबार से उठाकर अपने साथ लेकर चले गए। इस घटना से जयंचद ने अपमानित महसूस किया और पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने की ठानी। कहा जाता है कि इसके बाद जयंचद ने मोहम्मद गौरी को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए बुलाया और उसका साथ दिया था। यह घटना वर्ष 1191 और 1192 के बीच की मानी जाती है।

पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद ग़ोरी के बीच युद्ध

कहा जाता है कि सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार मोहम्मद गौरी को युद्ध में हराया था और हर बार माफ कर जिंदा छोड़ दिया। ऐसे में मोहम्मद गौरी दिल्ली पर आक्रमण कर पृथ्वीराज चौहान से बदला लेना चाहता था। वही, इधर जयचंद ने भी पृथ्वीराज से बदला लेने की ठान रखी थी और वह मोहम्मद गौरी के साथ मिल गया। जयंचद ने न सिर्फ गुप्त रास्ते, पृथ्वीराज चौहान की युद्ध नीति के बारे में मोहम्मद गौरी को बताया बल्कि उसकी सैन्य सहायता भी की।

कहा जाता है 1191 में तराइन के युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को हराया था और छोड़ दिया। इसके ठीक एक साल बाद वर्ष 1192 में 17वीं बार पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच युद्ध होता है। जिसमें मोहम्मद गौरी की ओर से जयचंद भी शामिल होता है। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान गंभीर घायल हो जाते हैं और उन्हें एवं उनके राजकवि चन्द्रबरदाई को बंदी बना लिया जाता है।

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि यह युद्ध मोहम्मद गौरी ने छल से जीता था। जयचंद, पृथ्वीराज के दयालु और धार्मिक स्वभाव से परिचित था। पृथ्वीराज चौहान की हिन्दू आस्था के चलते वे कभी भी अधर्म नहीं करते थे। इसी को देखते हुए मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान की सेना के आगे हजारों गायों को छोड़ दिया था ताकि पृथ्वीराज चौहान की सेना हमला नहीं कर सके। हुआ भी ऐसा ही, सामने गौवंश को देखकर पृथ्वीराज चौहान ने सैनिकों को हमला न करने की सलाह दी और इस बीच मोहम्मद गौरी की सेना ने इसी का फायदा उठाकर पृथ्वीराज चौहान की सेना को हरा दिया और उन्हें बंदी बनाकर आज के अफ़गानिस्तान ले गए थे।

पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु

इसके बाद पृथ्वीराज चौहान को बहुत यातनाएं दी गई। कहा जाता है कि उनकी दोनों आंखें गरम सरिये से जला दी गई और उन्हें अंधा कर दिया गया था। वही, मोहम्मद गौरी ने इस जीत के बाद एक उत्सव आयोजित किया था जहां उसे पृथ्वीराज चौहान के शब्द भेदी बाण में निपुण होने की जानकारी मिलती है और वह पृथ्वीराज चौहान को अपना कौशल दिखाने को कहता है।

इस पर पृथ्वीराज चौहान के कवि चन्द्रबरदाई उन्हें ‘चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान!’ बोलकर सुनाते हैं और पृथ्वीराज की कमान से निकला तीर मोहम्मद गौरी के सीने में जा लगता है और वहां उसकी मृत्यु हो जाती है। कहा जाता है कि इसके बाद पृथ्वीराज चौहान और चन्द्रबरदाई एक दूसरे को चाकू मारकर सम्मानित सद्गति को प्राप्त हो जाते हैं और अंतिम हिन्दू ह्रदय सम्राट, महान शासक पृथ्वीराज चौहान की वीरतापूर्ण जिंदगी का 28 वर्ष की आयु में 11 मार्च 1192 अंत हो जाता है।

You may also like

हिन्दू नव वर्ष History and Religion

हिन्दू नव वर्ष क्यों मनाया जाता है? कब हुई थी शुरुआत ?

बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्। मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः।। श्रीमद् भागवत कथा के दसवें अध्याय के ...

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *