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कभी गुजरात में 1100 रुपए में करते थे नौकरी, आज कइयों को दे रहे रोजगार, पढ़िए निर्मल खारोल के सफलता की कहानी

“आज से करीब 15 वर्ष पहले घर में गरीबी के चलते गुजरात के वडोदरा गया था। वहां महीने के करीब 11 सौ रुपए मिलते थे। ठेले पर बर्तन धोने का काम करता था। जब उतनी कम सैलरी से घर नहीं चला पाया तो पालनपुर आकर उधार के पैसे से पानीपुरी का ठेला शुरू किया लेकिन उससे भी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके बाद थक हार कर उदयपुर आ गया। उदयपुर आकर कइ व्यापार लगाए, एक भी नहीं चल सका, इस सबमें मुझ पर करीब 15 लाख का कर्जा हो गया। परेशान होकर हनुमान जी मंदिर में आकार बैठा करता था।”
यह शब्द है चित्तौड़गढ़ जिले के मोरवन के रहने वाले निर्मल खारोल के, जो असफलताओं से हारे नहीं, बल्कि हर बार उनका मज़बूती से सामना किया और खुद को साबित किया। कभी बर्तन मांझकर दिन में 35 रुपए कमाने वाले निर्मल आज साल का करोड़ौ रुपए का बिजनेस करते हैं।
इतना ही नहीं आज वे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 60 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। यह सब संभव हो पाया निर्मल के बुलंद हौसलों से, जो उन्होंने कभी टूटने नहीं दिए। करीब 15 साल के इस सफर में कई रुकावटें आईं, लेकिन वे नहीं हारे; इसका परिणाम यह हुआ कि उनकी मेहनत रंग लाइ और उनके 11 आउटलेट्स संचालित हैं।
बात वर्ष 2009 के आसपास की है, जब सातवीं में फेल होने के बाद रोजगार की तलाश में निर्मल गुजरात के वडोदरा गए। वहां उन्होंने एक ठेले पर बर्तन मांझने का काम किया। तनख़्वाह थी 1100 रुपए महीना। किसान के बेटे निर्मल ने वहां पर करीब 2 साल काम किया। जब आसपास के पानीपुरी के ठेले देखे तो ख्याल आया कि इन 1100 रुपए से कुछ होने वाला नहीं है, खुद का कुछ करना पड़ेगा।
निर्मल दो साल वहां काम करने के बाद पालनपुर आ गए। यहाँ पालनपुर में उन्होंने पानीपुरी का ठेला शुरू किया लेकिन चल नहीं सका। ठेले को चलाने के लिए लोकेशन भी बदली लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। पालनपुर ठेले से इतनी कमाई होती थी की ठेले का और खुद का खर्चा निकल जाए, लेकिन बचत और मुनाफ़े के नाम पर कुछ नहीं था। कई बार तो ऐसे हालात होते थे कि घर से पैसा लेना पड़ता था। यहाँ भी करीब 2 साल से ज्यादा वक़्त तक ठेला चलाने के बाद उदयपुर आने का मन बनाया।
निर्मल खारोल

निर्मल खारोल

निर्मल करीब 2013 के आसपास कर्जा हो जाने पर सब छोड़कर उदयपुर आ गए। यहाँ उन्होंने सांवरियां नाम से दाबेली का ठेला शुरू किया लेकिन समस्या समान थी कि ठेला चल नहीं पाता था।
एक बार फिर उनके सामने घोर निराशा के बादल थे। निर्मल के पास पैसा नहीं था लेकिन हौसला ज़रूर था और इसी हौसले ने उन्हें अबतक संभाल रखा था, आगे भी यही हौसला साथ देने वाला था, यह वे जानते थे।
“निर्मल खारोल बताते हैं कि जब सब छोड़कर उदयपुर आया तो ये सोचकर आया था कि अब यही विकल्प अंतिम बचा है। गुजरात के शहर में काम करके देख लिया, कुछ फायदा नहीं हुआ है, बल्कि कर्जा ज़रूर हो गया है। ऐसे में यह सोच रखा था कि अब जो भी करूँगा उदयपुर में करूँगा, चाहे इसके लिए कितनी भी मेहनत ही क्यों न करनी पड़े।”
निर्मल ने यह ठेला उदयपुर के बापू बाजार में लगाया था लेकिन ग्राहकी उतनी नहीं थी। उन्होंने सोच रखा था कि अब इस ठेले को किसी भी हालात में बंद नहीं करना है। निर्मल ने ठेले को चलाने के लिए और कर्जा लिया, जो उन पर चढ़ता ही जा रहा था। ऐसे में कुछ पैसे उधार लेकर उन्होंने उदयपुर में पानीपुरी का ठेला, दाबेली का ठेला, ऐसे कई प्रयास किए लेकिन ये भी सब असफल रहे।
निर्मल बताते हैं कि वर्ष 2014 से 2017 तक मैंने उदयपुर में कई जगहों पर ठेले लगाए कि अगर एक भी ठेला चल पड़ा तो दाबेली के ठेले का खर्च निकल जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालाँकि इतना ज़रूर हुआ कि मैंने बापू बाज़ार के दाबेली के ठेले को बंद नहीं करके उसे चालू रखा। इस ठेले पर शुरू के तीन साल लाभ नहीं हुआ, कुछ कर्ज़ा ज़रूर हुआ लेकिन तीन सालों में मैंने क़्वालिटी और टेस्ट पर फोकस किया।

निर्मल खारोल अपनी टीम के साथ

करीब 2014 से 2017 तक निर्मल ने ठेले को घाटे या यूँ कहे कि न लाभ न हानि की स्थिति में चलाया लेकिन रहने और खाने का खर्चा माथे पर था। निर्मल के अच्छे दिन 2018 के आसपास आने शुरू हुए। वर्ष 2018 के बाद सांवरिया दाबेली का स्वाद लोगों को जमने लगा। लम्बे समय तक ठेला रहने से वह उस एरिया का लैंडमार्क भी बन गया इससे आसपास के लोग वहां खाने आने लगे तो धीरे धीरे निर्मल ने लोगों की मांग पर बर्गर भी शुरू कर दिया।

उदयपुर में निर्मल खारोल की पुरानी शॉप सांवरिया बर्गर दाबेली (SBD)

सांवरियां ठेला, दाबेली के साथ बर्गर में अपनी पहचान बनाने लगा। अब उन्होंने अपने ठेले को आउटलेट में बदल दिया और नाम सांवरिया बर्गर दाबेली(SBD) कर दिया, जो चल पड़ा लेकिन उनको नहीं पता था कि कोविड काल बनकर आएगा। इस समय तक उनके 4 आउटलेट उदयपुर में हो चुके थे कई जिम्मेदारियां बढ़ चुकी थी कई लोगों का रोजगार उनके हाथ में था लेकिन इस परिस्थिति का भी उन्होंने डटकर सामना किया और किसी भी आउटलेट को कोविड काल में बंद नहीं होने दिया और किसी भी स्टाफ को किसी तरह की परेशानी नहीं झेलनी पड़ी ।
कोविड के बाद जब आउटलेट शुरू किया तो क्षेत्र में कई नए लोग आ चुके थे। अब कॉम्पीटिशन ज्यादा था, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। इस बार किस्मत साथ थी। सांवरिया बर्गर दाबेली पर भीड़ बढ़ने लगी। लोग स्वास्थ्य के प्रति गंभीर थे तो वे हाइजेनिक जगह पर खाना पसंद करते थे।निर्मल ने क़्वालिटी के साथ साफ़ सफाई पर खूब ध्यान दिया। नतीजा यह हुआ कि लोग सांवरिया बर्गर दाबेली को पसंद करने लगे।
जब व्यापार बढ़ा तो उन्होंने परिवार को भी इसी काम में लगा दिया। उन्होंने अपने साथ कई लोगों को काम पर भी रख दिया। मुनाफा हुआ तो सबसे पहले अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतार दिया।
यहाँ पर उन्होंने उन लोगों को रोजगार दिया या पार्टनर बनाया जो संकट के समय उनके साथ खड़े थे। सांवरिया बर्गर दाबेली नाम से उनका आउटलेट जब पहचान बनाने लगा तो उन्होंने एक एक कर 11 आउटलेट्स और खोल दिए, जो अच्छे चलने लगे।
आज निर्मल के 11 आउटलेट्स संचालित हैं, जिनसे हर साल करोड़ों रुपए का व्यापार होता है।
निर्मल खारोल जैसे युवा आज की पीढ़ी के लिए एक बड़ा प्रेरणा स्रोत है। निर्मल की सफलता की कहानी उन लोगों को प्रेरित करने वाली है जो परिस्थितियों से थक हार कर बैठ जाते हैं। निर्मल ने यह साबित किया कि बड़े लक्ष्य के साथ कड़ी मेहनत हो तो किसी भी मुकाम को हासिल किया जा सकता है।
हम निर्मल के प्रयासों की सराहना करते हैं।

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