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ओशो कौन थे? जानिएं ओशो की जीवनी (Osho Story in Hindi)

ओशो

आज इस आर्टिकल में हम एक ऐसे दार्शनिक के बारे में बात करेंगे जो भारत में नहीं, विश्वभर में चर्चित रहे। कहा जाता है कई देशों ने उन पर प्रतिबंध लगा रखा था। वहां की सरकारों को डर था कि अगर ओशो उनके देश आए तो वहां के नागरिकों को अपने विचार से प्रभावित कर देंगे। कहा जाता है कि ओशो शख्सियत ही ऐसे थे, जो उन्हें सुनता उनका मुरिद हो जाता था। उनकी बातों में तार्किकता हुआ करती ​थी इसी कारण विश्वभर के कई लोग उनके दर्शन से जुड़े और उन्हें आज भी सुनते हैं। आइए, हम Osho के बारे में जानते हैं।

ओशो कौन थे? (Osho kaun the?)

ओशो जिन्हें रजनीश के नाम से भी जाना जाता था वे एक भारतीय विचारक, दार्शनिक और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में ओशो को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, दार्शनिक और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वे ताउम्र विवादित ही रहे। वर्ष 1960 के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी और हिंदू (Hindu) धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलोचक रहे। Osho ने कामुकता यानी सेक्स के प्रति एक ज्यादा खुले रवैया की वकालत की, जिसके कारण वे भारत और पश्चिमी देशों में भी आलोचना के पात्र बने।

आचार्य रजनीश (Acharya Rajneesh) को उनके चाहने वाले ओशो के नाम से ज्यादा पुकारते हैं। ओशो गैर परंपरावादी विचारधारा के लिए ज्यादा जाने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे तार्किक रूप से इतने सशक्त थे कि कोई भी सामान्य व्यक्ति उन्हें सुनने के बाद उनका मुरीद हो जाता था। आज भारत सहित विश्वभर में उनके दर्शन को मानने वाले अनुयायी है। Osho को आज भी सुना जाता है।

ओशो (Osho) का जन्म कब हुआ था?

osho-birthday

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा में हुआ था। उनके बचपन का नाम चंद्रमोहन जैन था, जिसके बाद रजनीश और फिर उन्हें ओशो नाम से जाना जाने लगा। वे कपड़े व्यापारी बाबूलाल जैन की 11 संतानों में सबसे बड़े थे। बचपन के शुरुआती 8 साल उन्होंने अपने नाना के यहां गुजारे। नानी के निधन के बाद रजनीश अपने माता पिता के यहां गाडरवारा आ गए, जहां स्कूल में वे बड़ा तार्किक तौर पर वाद विवाद करने वाले छात्र के रूप में प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि Osho का शुरू से ही रहस्यवादी दर्शन आदि में झुकाव था। वे पढ़ने के भी शौकीन थे, उन्होंने कार्ल मार्क्स और एजेंल को कम उम्र में ही पढ़ लिया था।

ओशो की शिक्षा

ओशो की प्रारंभिक शिक्षा शासकीय आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में हुई थी। इसके बाद 19 साल की उम्र में उन्होंने जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में दाखिला लिया लेकिन शिक्षक से विवाद होने पर वे डीएन जैन कॉलेज में स्थानांतरित कर दिए गए थे। हितकारिणी कॉलेज से निकाले जाने के बाद इन्होंने 1955 में डी.एन. जैन कॉलेज से आर्ट्स लेकर दर्शनशास्त्र विषय पर बीए की डिग्री हासिल की थी। उसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा सागर विश्वविद्यालय, सागर से दर्शनशास्त्र में डिस्टिंक्शन के साथ पूरा किया। कहा जाता है कि ओशो ने अपने जीवन काल में डेढ़ लाख किताबें पढ़ी थीं।

ओशो का दर्शन क्या ​है? (philosophy of osho in hindi)

ओशो जब तक जिंदा रहे विवादित रहे। कुछ लोगों ने उनके दर्शन (Osho Philosophy) को पसंद किया तो कुछ ने नापसंद। ओशो ऐसे गुरु थे जिन्होंने प्रेम के साथ विरोध की बात की, मृत्यु को उत्सव कहा, संभोग को समाधि, आस्तिकता-नास्तिकता की बात की। Osho ने अपने दर्शन में मृत्यु सीखाने की बात की। जिस शब्द को सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाए उस पर जश्न मनाने की बात की। उन्होंने प्रेम, परमात्मा, संभोग की बात की। नदियों की तरह बह जाने की बात की। धर्म, सेक्स और समाधि की बात की। Osho ने कहा कि अच्छे शब्दों को सुनना और उसे आत्मसात करना, दोनों में अंतर होता है। खुद को सहज स्वीकार करना इतना आसान कहां? शायद यही वजह है कि लोग ओशो के दर्शन को सुनना पसंद करते हैं लेकिन उन्हें फॉलो करना चाहते।

ओशो किसी संगठित धर्म में विश्वास नहीं रखते थे। उनका कहना था अगर कोई धर्म जीवन को व्यर्थ बताए वो खुद ही व्यर्थ है। ओशो की आवाज में एक आकर्षण था जिसे सुनने के लिए लोग बड़ी तादात में खुद-ब-खुध खींचे चले आते थे। Osho की बातों में तार्किकता थी। वे सदैव तार्किक बातें किया करते ​थे। उनका दर्शन तर्क पर आधारित ज्यादा दिखाई पड़ता है।

ओशो की नज़र में सन्यासी वो नहीं जो अपना घर बार छोड़कर, बीवी बच्चे छोड़कर धर्म की शरण में चला जाए। बल्कि संन्यासी वह है जो अपने घर-संसार, पत्नी और बच्चों के साथ रहकर पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए ध्यान और सत्संग का जीवन जिए। कहा जाता है कि Osho महात्मा गांधी के विचारों से हमेशा असहमत रहे। उनका कहना था कि गांधी की विचारधारा इंसान को पीछे ले जाती है। ओशो के मुताबिक, मेरी दृष्टि में कृष्ण अहिंसक हैं और गांधी हिंसक। दो तरह के लोग होते हैं, एक वो जो दूसरों के साथ हिंसा करें और दूसरे वो जो खुद के साथ हिंसा करें। उनकी नजर में गांधी दूसरी किस्म के व्यक्ति थे।

ओशो नाम कैसे पड़ा?

ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना। वर्ष 1960 के दशक में वे चंद्रमोहन जैन से ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से एवं 1970-80 के दशक में वे भगवान श्री रजनीश नाम से और फिर वर्ष 1989 के बाद से Osho नाम से जाने गए। उनके अनुयायियों ने उन्हें ओशो नाम से पुकारा और फिर वे इसी नाम से आज तक जाने जाते हैं। एक समय Osho के पास 93 राॅल्स रायल कारों का जखीरा और विश्व भर में उनके अनुयायी थे।

पूना में रजनीश आश्रम की स्थापना कब हुई?

ओशो ने विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ने के बाद भारत में नव सन्यास आंदोलन की शुरुआत की। 70 और 80 के दशक में यह आंदोलन खूब विवादों में रहा था। वर्ष 1970 में ओशो मुम्बई आ गए। इसी वर्ष मनाली में उन्होंने नव सन्यास में दीक्षा देना भी शुरू किया। इसके बाद ओशो अपने सन्यासियों के साथ 1974 में पूना आ गए। यहां पर आचार्य रजनीश आश्रम की शुरुआत हुई। जहां ओशों ने असंख्य प्रवचन दिए।

Osho कोई पारंपरिक संतों की तरह कोई रामायण या महाभारत आदि का पाठ नहीं कर रहते, न ही व्रत-पूजा या धार्मिक कर्मकांड करवाते थे। वह स्वर्ग-नर्क एवं अन्य अंधविश्वासों से परे उन विषयों पर बोलते जिन पर इससे पहले शायद ही किसी ने बोला हो। Osho के विषय बिल्कुल अलग होते थे। ऐसा ही एक विषय ‘सम्भोग से समाधि की ओर’ जो आज भी विवादित माना जाता है।

Osho अमेरिका कब गए?

osho in america

पूना में आश्रम के दौरान सन् 1981 में स्वास्थ्य खराब होने की वजह से चिकित्सकों के परामर्श पर ओशो अमेरिका चले गए। वे साल 1981 से 1985 के बीच चार साल अमेरिका में रहे। ओशो के यहां भी बड़ी संख्या में अनुयायी थे।उनके अमेरिकी शिष्यों ने ओरेगॉन राज्य में 64000 एकड़ जमीन खरीदकर उन्हें वहां रहने के लिए आमंत्रित किया। इस रेगिस्तानी जगह में ओशो कम्यून खूब फलने-फूलने लगा। यहां करीब 5000 लोग रह रहे थे। महंगी घड़ियां, रोल्स रॉयस कारें, डिजाइनर कपड़ों की वजह से ओशो का अमरीका प्रवास बेहद विवादास्पद रहा। अमेरिका के ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम (Rajneeshpuram) नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया।

ओशो के आश्रम में क्या होता था? (Osho World)

आजतक ने ओशो की शिष्या रहीं ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक गैरेट के ​हवाले से लिखा कि, “आश्रम में सभी सपने में जी रहे थे। हंसी, आज़ादी, स्वार्थहीनता, सेक्सुअल आज़ादी, प्रेम और दूसरी तमाम चीज़ यहां मौजूद थीं। आश्रम में शिष्यों से कहा जाता था कि वे यहां सिर्फ़ अपने मन का करें, वे हर तरह की वर्जना को त्याग दें, वो जो चाहें करें। आजतक ने गैरेट के हवाले से आगे लिखा कि हम एक साथ समूह बना कर बैठते थे, बात करते थे, ठहाके लगाते थे, कई बार नंगे रहते थे। हम यहां वो सब कुछ करते थे जो सामान्य समाज में नहीं किया जाता है।

पहले यह एक आश्रम था लेकिन देखते ही देखते यहां एक पूरी कॉलोनी बस गई। जहां रहने वाले Osho के अनुयायियों को ‘रजनीशीज’ कहा जाने लगा। धीरे-धीरे ओशो रजनीश के फॉलोअर्स और रजनीशपुरम में रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी, जो ओरेगन सरकार ने खुद के लिए खतरे के रूप में देखी।

Osho ने अमेरिका क्यों छोड़ा?

कहा जाता है कि अक्टूबर 1985 में अमरीकी सरकार ने Osho पर अप्रवास नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप लगाए और उन्हें हिरासत में ले लिया। अमेरिकी सरकार ने ओशो पर 4 लाख अमेरिकी डॉलर की पेनाल्टी लगाई और उन्हें देश छोड़ने और 5 साल तक वापस ना आने की भी सजा हुई। ऐसा कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें जेल में अधिकारियों ने थेलियम नामक धीरे असर करने वाला जहर दे दिया। ओशो 14 नवंबर 1985 को अमेरिका छोड़कर भारत लौट आए।

ओशो पर कितने देशों का प्रतिबंध था?

आज तक पर पब्लिश खबर के अनुसार किताब ‘कौन है ओशो: दार्शनिक, विचारक या महाचेतना’ में शशिकांत लिखते हैं, फरवरी 1986 में ओशो ने विश्व भ्रमण की शुरुआत की, लेकिन अमेरिकी सरकार के दबाव की वजह से ओशो को 21 देशों ने या तो देश से निष्कासित किया या फिर देश में प्रवेश की अनुमति नहीं दी। इन देशों में ग्रीस, इटली, स्विटजरलैंड, स्वीडन, ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिम जर्मनी, कनाडा और स्पेन प्रमुख थे।

ओशो की मृत्यु कैसे हुई? ओशो को किसने मारा?

ओशो वर्ष 1987 में पूना स्थित अपने आश्रम में लौट आए। वह 10 अप्रैल 1989 तक 10,000 शिष्यों को प्रवचन देते रहे। इसी दौरान 19 जनवरी, वर्ष 1990 में ओशो रजनीश ने हार्ट अटैक की वजह से अपनी अंतिम सांस ली। कहा जाता है कि अमेरिकी जेल में रहते हुए उन्हें थैलिसियम का इंजेक्शन दिया गया और उन्हें रेडियोधर्मी तरंगों से लैस चटाई पर सुलाया गया। जिसकी वजह से धीरे-धीरे ही सही ओशो मृत्यु के नजदीक जाते रहे। हालांकि इस बात का अभी तक कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है लेकिन ओशो के अनुयायी तत्कालीन अमेरिकी सरकार को ही उनकी मृत्यु (Osho Death) का कारण मानते हैं।

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